काल सर्प दोष क्या हैं? कुंडली में कालसर्प दोष कैसे बनता हैं ?
काल सर्प दोष एक ऐसा दोष हैं जो कि राहु और केतु के मध्य में सूर्य ,चंद्रमा,मंगल, बुध,गुरु, शुक्र, शनि ग्रह का कुंडली में प्रवेश होने पर काल सर्प दोष उत्पन्न होता हैं। राहु सर्प का मुख हैं और केतु पुंछ हैं
जब राहु सर्प का मुख होने के कारण शुभ ग्रहों का फल ग्रहण करके अशुभ फल प्रदान करते हैं। जिस जातक की जन्म कुंडली में काल सर्प दोष बनता हैं अथवा उत्पन्न होता हैं। उस जातक को अनेकों प्रकार के कष्ट बाधा आती हैं।
कालसर्प दोष जातक की जन्म कुंडली में एक कष्टकारी स्थिति है | कष्टकारी से यह तात्पर्य है कि जातक तो अपने जीवन में सिर्फ इस दशा के होने पर कई ऐसे कष्टों का सामना करना पड़ता है जिससे जातक खुद को परेशान समझने लगता है और नकारात्मक ऊर्जा आने लगती हैं इस प्रकार की स्थिति में जातक की कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आकर एक ऐसी परिस्थिति बनाते है, जिससे जातक के अथक प्रयास भी व्यर्थ जाते है और ये प्रयास उन्हें जीवन में सफलता प्रदान नहीं कर पाते |
इस दोष से कई नकारात्मक प्रभाव होते है लेकिन मुख्यतः इस दोष का प्रभाव जातक के शरीर, मनदशा, वैवाहिक जीवन एवं धन पर पड़ता है | जातक कभी आर्थिक तंगी से गुजरता है तो कभी शारीरिक रूप से परेशान रहता है | जातक को न ही नौकरी पेशे में सफलता मिलती है और न ही वह व्यापार में लाभ कमा पाता है |
यदि कोई जातक यह जानना चाहता है कि ऐसे कौन सी स्थिति बनती है जब कालसर्प दोष उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है तो जातक अपनी कुंडली में किसी ज्योतिष के मदद से यह देख पायेगा कि जब सूर्य मंडल के सातों गृह उसकी कुंडली में राहु एवं केतु के बीच में आ जाते है और आधी कुंडली ग्रह रहित होती है और उसकी उनकी कुंडली में इस दशा को ही कालसर्प दोष कहते है | इसे हम पूर्ण कालसर्प योग भी कह सकते हैं किन्तु यदि एक भी ग्रह राहु केतु अक्ष रेखा के बाहर होता है तब जातक के कुन्डली में पूर्ण कालसर्प दोष नहीं होता हैं|
ग्रहों के स्थिति के अनुसार कालसर्प योग मुख्यतः १२ प्रकार के होते है और हर दोष का प्रभाव जातक के जीवन में भिन्न-भिन्न होता हैं| कोई स्थिति जीवन साथी के लिए बुरी हो सकती हैं तो कोई श्रेष्ठ हो सकती हैं।
काल सर्प दोष के प्रकार:
जैसा की हमने पाठको को बताया की ग्रहों की स्तिथि के अनुसार जातक पर काल सर्प दोष के प्रभाव होते हैं | इन्ही ग्रहो की स्तिथि यह सुनिश्चित करती हैं कि जातक की कुंडली में स्थित काल सर्प दोष कौन से प्रकार का हैं | यह कुल १२ प्रकार का होता हैं|
1.(अनन्त कालसर्प दोष) :
जब जातक की कुंडली में राहु लग्न में हो तथा केतु सप्तम में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में हों तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
2.(कुलिक कालसर्प दोष ):
जब जातक की कुंडली में राहु दूसरे घर में तथा केतु अष्टम स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
3.(वासुकी कालसर्प दोष ):
जब जातक की कुंडली में राहु तीसरे घर में तथा केतु नवम स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
4.(शंखपाल कालसर्प दोष) :
जब जातक की कुंडली में राहु चौथे घर में और केतु दशम स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
5.(पद्म कालसर्प दोष) :
जब जातक की कुंडली में राहु पंचम घर में और केतु एकादश स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
6.(महापद्म कालसर्प दोष ):
जब जातक की कुंडली में राहु छठे घर में और केतु बारहवे स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
7.(तक्षक कालसर्प दोष) :
जब जातक की कुंडली में राहु सप्तम घर में और केतु लग्न में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
8.(कर्कोटक कालसर्प दोष) :
जब जातक की कुंडली में राहु अष्टम घर में और केतु दूसरे स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
9.(शंखचूड़ कालसर्प दोष ):
जब जातक की कुंडली में राहु नवम घर में और केतु तीसरे स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
10.(घातक कालसर्प दोष ):
जब जातक की कुंडली में राहु दशम घर में और केतु चौथे स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
11.(विषधार कालसर्प दोष):
जब जातक की कुंडली में राहु ग्यारवे घर में और केतु पांचवें स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच मंं ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
12. (शेषनाग कालसर्प दोष):
जब जातक की कुंडली में राहु बारहवें घर में और केतु छठें स्थान में उपस्थित हो एवं बाकी सारे ग्रह इनके बीच में ही हो तो इस प्रकार का कालसर्प दोष होता है।
काल सर्प दोष से लाभ तथा हानि:
लोगों के बीच में अक्सर यह भ्रान्ति पाई जाती है कि काल सर्प दोष जातक की कुंडली में होने से उसके जीवन में बहुत सारे कष्ट आते है और सब तरह से परेशान रहता है | हालांकि ये सब जानकारी कटु और सच है, किन्तु इसके अलावा काल सर्प दोष का दूसरा पक्ष भी है | आपको यह जानकार बड़ा आश्चर्य होगा कि काल सर्प दोष कुंडली पर हो और उससे जीवन में लाभ होते हों | हम हर जगह अक्सर इस दोष से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में पढ़ते व सुनते है किन्तु यदि यह दोष किसी जातक के कुंडली पर उपस्थित हो, तो यह योग उसे लाभ भी प्रदान कर सकता है | आइये जानते है ऐसी ही कुछ रोचक जानकारी के बारे में |
•काल सर्प दोष वाले जातक अपने जीवन में अपार सफलता हासिल करते है यदि राहु उनकी कुंडली में लाभकारी स्थिति में हो |
•काल सर्प दोष वाले जातक ज्यादा मेहनती , ईमानदार और साहसी हो सकते है, इस प्रकार से वो अपने जीवन में सफलता हासिल कर पाते है |
•जातक एकाग्रचित होकर अपना कार्य करते है |
•जातक साहसी होते है और इस वजह से वो अपने जीवन में अधिक जोखिम उठाने को तैयार रहते है | इस कारण उन्हें सफलता भी मिलती है |
•जातक अपनी कमजोरियों से लड़ते है और एक बेहतर अवतार में निखार कर आते है |
•जातक की कुंडली में यदि राहु अच्छी स्थिति में हो तो जातक की कल्पना शांति बहुत अच्छी होती है |